भारत के हर त्यौहार में आस्था और संस्कृति का अनोखा संगम दिखाई देता है, और उन्हीं में एक है छठ पूजा — जो सूर्य देव और छठी मइया की उपासना का महापर्व है। यह पर्व केवल पूजा का अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मबल, संयम और प्रकृति के प्रति गहरी श्रद्धा का प्रतीक है। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में इसका विशेष आयोजन बड़े ही भव्य और पवित्र वातावरण में किया जाता है।
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आस्था की जड़ेंछठ पूजा की परंपरा हजारों वर्षों पुरानी मानी जाती है। कहा जाता है कि सूर्य देव की कृपा से जीवन में प्रकाश और ऊर्जा का संचार होता है। यही कारण है कि लोग इस पर्व को सूर्य की उपासना के रूप में मनाते हैं। छठी मइया को प्रकृति की माता और संतान की रक्षक कहा गया है। जो महिलाएं संतान प्राप्ति या परिवार के कल्याण की कामना करती हैं, वे निराहार रहकर इस पूजा को संपन्न करती हैं।चार दिन का पवित्र अनुष्ठाननहाय-खाय: पहले दिन व्रती स्नान कर घर को शुद्ध करती हैं और सात्विक भोजन करती हैं। यह दिन पवित्रता और आत्मसंयम की शुरुआत माना जाता है।खरना: दूसरे दिन पूरे दिन निर्जला उपवास रखा जाता है। शाम को गुड़-चावल की खीर और रोटी का प्रसाद बनाकर चंद्रमा को अर्पित किया जाता है।संध्या अर्घ्य: तीसरे दिन घाटों पर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। परिवार और समुदाय मिलकर गीत गाते हैं, दीप जलाते हैं, और वातावरण भक्तिमय हो उठता है।
उषा अर्घ्य: अंतिम दिन व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देती हैं और अपने मन की कामनाएं सूर्य देव के चरणों में समर्पित करती हैं। इस क्षण को देखने मात्र से भी आत्मिक शांति और अपनापन का अहसास होता है।छठ और लोक संस्कृति छठ पूजा के गीत, ढोलक की थाप और लोकनृत्य पूरे वातावरण को भक्ति से भर देते हैं। महिलाएं पारंपरिक साड़ी पहनकर, सिर ढककर और हाथों में डाला, ठेकुआ, केला, नारियल जैसे प्रसाद लेकर घाट जाती हैं। यह दृश्य भारतीय महिला शक्ति और परिवार के प्रति समर्पण की अद्भुत झलक प्रस्तुत करता है।
प्रकृति और संदेशछठ पूजा हमें प्रकृति और पर्यावरण के प्रति प्रेम की शिक्षा भी देती है। स्वच्छ नदी, निर्मल जल और स्वाभाविक आचरण इस पर्व का अभिन्न हिस्सा हैं। यह पर्व हमें सिखाता है कि सच्ची पूजा तभी संभव है जब हम अपने परिवेश को भी निर्मल और उज्ज्वल रखें।
छठ पूजा मानव और प्रकृति के गहरे संबंध का उत्सव है। यह न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकता, परिवार के प्रति प्रेम और समाज में शुद्धता का संदेश भी देती है। जब उगते सूर्य की लालिमा घाट पर बिखरती है, तब हर भक्त के चेहरे पर एक विश्राम, संतोष और कृतज्ञता की चमक नजर आती है।


