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उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या… पढ़िए जॉन एलिया की खूबसूरत गज़ल

ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता, एक ही शख़्स था जहान में क्या

डिजिटल डेस्क। जॉन एलिया उर्दू के एक महान शायर हैं। इनका जन्म 14 दिसंबर 1931 को अमरोहा में हुआ। यह अब के शायरों में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले शायरों में शुमार हैं। शायद, यानी, गुमान इनके प्रमुख संग्रह हैं इनकी मृत्यु 8 नवंबर 2002 में हुई।[1] जौन सिर्फ पाकिस्तान में ही नहीं हिंदुस्तान व पूरे विश्व में अदब के साथ पढ़े और जाने जाते हैं। इसलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं जॉन की लिखी एक खूबसूरत गज़ल…

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उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या

दाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या

मेरी हर बात बे-असर ही रही

नुक़्स है कुछ मिरे बयान में क्या

मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं

यही होता है ख़ानदान में क्या

अपनी महरूमियाँ छुपाते हैं

हम ग़रीबों की आन-बान में क्या

ख़ुद को जाना जुदा ज़माने से

आ गया था मिरे गुमान में क्या

शाम ही से दुकान-ए-दीद है बंद

नहीं नुक़सान तक दुकान में क्या

ऐ मिरे सुब्ह-ओ-शाम-ए-दिल की शफ़क़

तू नहाती है अब भी बान में क्या

बोलते क्यूँ नहीं मिरे हक़ में

आबले पड़ गए ज़बान में क्या

ख़ामुशी कह रही है कान में क्या

आ रहा है मिरे गुमान में क्या

दिल कि आते हैं जिस को ध्यान बहुत

ख़ुद भी आता है अपने ध्यान में क्या

वो मिले तो ये पूछना है मुझे

अब भी हूँ मैं तिरी अमान में क्या

यूँ जो तकता है आसमान को तू

कोई रहता है आसमान में क्या

है नसीम-ए-बहार गर्द-आलूद

ख़ाक उड़ती है उस मकान में क्या

ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता

एक ही शख़्स था जहान में क्या

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